(१)
उम्मीद के परे अस्तित्व रखतीं
ज़िन्दगी के परे पाँव फैलातीं
अपनी गुरुता का बोझ डाले
हमारे जीवन का हिस्सा बनते हुए
सब्र की मेड़ों से खिलवाड़ करती हैं;
आँखों को बार बार खोलती हैं
ऊर्जा दे जाती हैं जीने का
कभी दिख कर
कभी आस पास आकर - सहला जाती हैं
और जगा जाती हैं - ख्वाहिशें!!
(२)
गूंजती हैं सपनों में
बेचैन करती हैं नींदों में
खुली आँखों में बहकाती हैं
बेमतलब की योजनायें बनवाती
अंतर्द्वंद बढाती हैं
मुस्कुराती हैं - लज्जित भी करती हैं
हमारी लघुता को उजागर कर
बहलाती हैं - गुनगुनाती हैं
काश कभी खामोश हो पाती - ख्वाहिशें!!
1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरती से लिखा है ख्वाहिश को
एक टिप्पणी भेजें