गुरुवार, 9 जुलाई 2009

एक कविता

तुम्हारा जाना
एक एहसास भर नहीं
तमाम संभावनाओं का व्यतिक्रम था

तुम्हारा होना
मेरी रिक्तता का आकलन ही नहीं
मेरी विवशता की सहमति भी है।
तुम्हारी गहरी आंखों से
मैं नजरें भले ही चुरा लूँ -
फ़िर भी डूबता चला जाता हूँ।

मेरे भाव शायद कभी प्रेषित ना हो पायें
मेरी मुस्कुराहटें हमेशा की तरह 'स्किन डीप' समझी जाए
मेरे स्वार्थ कभी भी छिपे ना रह पाए
फ़िर भी मेरा सच सिर्फ़ इतना ही तो नहीं।

1 टिप्पणी:

Pankaj ने कहा…

Achhe raste par ja rahe ho.

Bhagwan tumahri manokamana purn kare.

Shubh Aashish.

Pankaj