बुधवार, 27 नवंबर 2019

फ़ुरसत में

कभी फ़ुरसत  मिले तो बताना
साथ बैठेंगे  - सुनाएंगे अपने सपने
बांटेंगे उनके टूटने का दर्द
हो सके तो सुन लेना  - अगर कह ना भी पाऊं, तो समझ लेना।

कभी फ़ुरसत मिले तो बताना
कि मेरा इंतज़ार अब तुम्हें परेशान क्यों नहीं करता  -
क्या मेरी ज़िद तुम्हें अब भी बेचैन करती है?
बता देना - क्योंकि पूछना तो मुझे अब भी नहीं आता।

यह भी बताना कि बंटवारों में सपनों का क्या होता है?
वो भी बंटते हैं - या सिर्फ टूट कर बिखरते भी हैं।
उम्मीदें बुनना क्या इतना ही आसान होता है?
लड़ाई की ज़िद की ज़द कहाँ तक होती है?
पूछ तो मैं फिर भी नहीं पाऊंगा - तुम बताने की कोशिश करना।

फ़ुरसत मिले ना मिले  - उम्मीदों को मत छोड़ना
समय न मिल पाए शायद - तुम आँखें खुली रखना
नींद भले पूरी ना हो - ताज़गी भरपूर रखना
कह तो मैं कुछ भी नहीं पाऊंगा  - मेरी उम्मीदों को मत तोड़ना !!