कितनी ही कहानियां - जो कहनी हैं, सुननी हैं
कितनी उम्मीदें - खुद से, औरों से
कितनी ही ख्वाहिशें और ढेर सारे रास्ते
ढेरों यात्राएं और उनसे जुड़ा एकाकीपन
बहुत कुछ शेष है.
जो संवाद अधूरे हैं- पूरे करने हैं
कविताएं जो सिर्फ ज़ेहन में हैं - लिखी जानी हैं
पुस्तकें जो पढ़ी जानी थीं - आधी पढ़ कर रखी हैं
कई सारी बचपन की चिट्ठियां - अब भी लिखी जानी बाकी हैं
आशायें, सपने - तमाम नाकामियों के बाद भी बची हुई हैं।
वो बातें जो सिर्फ सोची गईं - वो तारीफ़ें वो शिक़ायतें
जो तुच्छ सी लगीं थीं
वो उम्मीदें - जो ज़िद से छोटी साबित हुईं
वो दुःख जो कमज़ोर तो कर गए, पर दूसरों से छुपा दिए गए
अब भी बचे हैं.
खुली आँखों वाले वो सारे सपने, अब भी टिके हैं
भटकाव के इस दौर में - हिम्मत देती वो बातें
उलझन भरे इस वक़्त में - बचपन में पढ़ी गईं पतली किताबों की सीख़
कुछ बुनियादी भरोसे
कुछ अडिग ज़िद
और ढेर सारा समर्पण -
कितना कुछ तो शेष है.
कितनी उम्मीदें - खुद से, औरों से
कितनी ही ख्वाहिशें और ढेर सारे रास्ते
ढेरों यात्राएं और उनसे जुड़ा एकाकीपन
बहुत कुछ शेष है.
जो संवाद अधूरे हैं- पूरे करने हैं
कविताएं जो सिर्फ ज़ेहन में हैं - लिखी जानी हैं
पुस्तकें जो पढ़ी जानी थीं - आधी पढ़ कर रखी हैं
कई सारी बचपन की चिट्ठियां - अब भी लिखी जानी बाकी हैं
आशायें, सपने - तमाम नाकामियों के बाद भी बची हुई हैं।
वो बातें जो सिर्फ सोची गईं - वो तारीफ़ें वो शिक़ायतें
जो तुच्छ सी लगीं थीं
वो उम्मीदें - जो ज़िद से छोटी साबित हुईं
वो दुःख जो कमज़ोर तो कर गए, पर दूसरों से छुपा दिए गए
अब भी बचे हैं.
खुली आँखों वाले वो सारे सपने, अब भी टिके हैं
भटकाव के इस दौर में - हिम्मत देती वो बातें
उलझन भरे इस वक़्त में - बचपन में पढ़ी गईं पतली किताबों की सीख़
कुछ बुनियादी भरोसे
कुछ अडिग ज़िद
और ढेर सारा समर्पण -
कितना कुछ तो शेष है.