गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

राह अजानी

राह अजानी चल ना पाया
अपने मन की सुन ना पाया
चुनता रहा मोतियां हरदम
मन की तृषा बुझा ना पाया

प्रेयस-श्रेयस सभी एक थे
भ्रम-संभ्रम भी नहीं शेष थे
राह प्रशस्त दृष्टि भी उज्जवल
मन का द्वंद्व प्रबलतर किन्तु
मोह बन्ध से छुट ना पाया

राह अजानी चल ना पाया
अपने मन की सुन ना पाया ........

श्वेत-श्याम का व्यर्थ भेद अब
संकुचित दृष्टि बस यही खेद अब
देखी जानी भोगी पीड़ा
संत्राष-ज्ञान से जुड़ कर भी मैं
मार्ग मुक्ति का चुन ना पाया

राह अजानी चल ना पाया
अपने मन की सुन ना पाया .........